| मार्शल सद्दाम हुसैन Saddam Hussein صدام حسين | |
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| में सद्दाम हुसैन का आधिकारिक चित्र | |
इराक के राष्ट्रपति | |
| पदबहाल 16 जुलाई 9 अप्रैल | |
| प्रधानमंत्री | |
| पूर्वाधिकारी | अहमद हसन अल वकर |
| उत्तराधिकारी | जे गार्नर(इराक के पुनर्निर्माण और मानवीय सहायता के लिए कार्यालय के निदेशक) |
इराक के क्रांतिकारी कमान परिषद के अध्यक्ष | |
| पदबहाल 16 जुलाई 9 अप्रैल | |
| पूर्वाधिकारी | अहमद हसन अल वकर |
| उत्तराधिकारी | स्थिति को समाप्त कर दिया |
57 वें और 61 वें इराक के प्रधानमंत्री | |
| पदबहाल 29 मई 9 अप्रैल | |
| राष्ट्रपति | स्वयं |
| पूर्वाधिकारी | अहमद हुसैन खुदायिर अस-समरराई |
| उत्तराधिकारी | मोहम्मद बह्र अल-उल्म (इराक के गवर्निंग काउंसिल के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में) |
| पदबहाल 16 जुलाई 23 मार्च | |
| राष्ट्रपति | स्वयं |
| पूर्वाधिकारी | अहमद हसन अल-बक्र |
| उत्तराधिकारी | सादुन हम्मदी |
अरब समाजवादी बाथ पार्टी के राष्ट्रीय कमान के महासचिव | |
| पदबहाल जनवरी 30 दिसंबर | |
| पूर्वाधिकारी | मिशेल अफलाक |
| उत्तराधिकारी | पद खाली |
इराकी क्षेत्रीय शाखा के क्षेत्रीय कमांड के क्षेत्रीय सचिव | |
| पदबहाल 16 जुलाई 30 दिसंबर | |
| राष्ट्रीयसचिव | मिशेल अफ्लाक( से) स्वयं( तक) |
| पूर्वाधिकारी | अहमद हसन अल-बक्र |
| उत्तराधिकारी | ज्जत इब्राहिम ऑड-डौरी |
| पदबहाल फरवरी अक्टूबर | |
| पूर्वाधिकारी | अहमद हसन अल-बक्र |
| उत्तराधिकारी | अहमद हसन अल-बक्र |
इराकी क्षेत्रीय शाखा के क्षेत्रीय कमान के सदस्य | |
| पदबहाल फरवरी 9 अप्रैल | |
इराक के उपराष्ट्रपति | |
| पदबहाल 17 जुलाई 16 जुलाई | |
| राष्ट्रपति | अहमद हसन अल-बक्र |
| जन्म | 28 अप्रैल अल अवजा, सलाहुद्दीन प्रान्त, इराक |
| मृत्यु | 30 दिसम्बर () (उम्र69 वर्ष) कदिमिया, बगदाद, इराक |
| जन्म कानाम | सद्दाम हुसैन अब्द अल-माजिद अल-टिकरी |
| राष्ट्रीयता | इराक |
| राजनीतिकदल | अरब समाजवादी बाथ पार्टी (–) बगदाद स्थित बाथ पार्टी (–) |
| अन्यराजनीतिक संबद्धताऐं | नेशनल प्रोग्रेसिव फ्रंट (इराक) (–)[1][2] |
| जीवन संगी | साजिदा तलफ समीरा शाहबंदहार |
| बच्चे | उदय हुसैन (मृतक) कुसई हुसैन (मृतक) रागद हुसैन रना हुसैन हला हुसैन |
| धर्म | सुन्नी इस्लाम |
| हस्ताक्षर | |
| सैन्य सेवा | |
| निष्ठा | इराक |
| सेवा/शाखा | इराकी सशस्त्र बल |
| पद | मार्शल |
सद्दाम हुसैन अब्द अल-माजिद अल-तिक्रिती (अरबी: صدام حسين عبد المجيد التكريتي) दो दशक तक (16 जुलाई, से 9 अप्रैल, तक) इराक़ के राष्ट्रपति रह चुके है। उन्हें 30 दिसम्बर को उत्तरी बगदाद में स्थानीय समय के अनुसार सुबह ६ बजे फाँसी दी गई थी[3][4]।
३१ वर्ष की आयु में सद्दाम हुसैन ने जनरल अहमद अल बक्र के साथ मिल कर इराक की सत्ता हासिल की। में वह खुद इराक के राष्ट्रपति बन गए। सन् में हुए दुजैल जनसंहार मामले में उन्हें वर्ष में फाँसी की सजा मिली।
सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल को बग़दाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल-ओजा गांव में हुआ था। उनके मजदूर पिता उनके जन्म के पहले ही दिवंगत हो चुके थे। उनकी मां ने अपने देवर से शादी कर ली थी लेकिन बच्चे की परवरिश की खातिर उसे जल्द ही तीसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ी। उस दौर का तिकरित अपनी वीभत्सताओं के लिए कुख्यात था। इन परिस्थितियों ने सद्दाम को बचपन में ही भयानक रूप से शक्की और निर्दयी बना दिया। बच्चों के हाथों पिटने के भय से बाल सद्दाम हमेशा अपने पास एक लोहे की छड़ी रखते थे। और जब-तब इससे जानवरों की पिटाई किया करता थे।
किशोरावस्था में कदम रखते-रखते वह विद्रोही हो गए और ब्रिटिश नियंत्रित राजतंत्र को उखाड़ फेंकने के लिए चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलन में कूद पड़े। हालांकि पश्चिम के अखबार इस आंदोलन को गुंडे-बदमाशों की टोली ही कहता हैं। में वह बाथ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। बाथ पार्टी अरब जगत में साम्यवादी विचारों की वाहक फौज थी। सद्दाम उसमें वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण नहीं, अपनी दीर्घकालिक रणनीति के तहत शामिल हुए।
वर्ष में इराक में ब्रिटिश समर्थित सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़का और ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने राजशाही को हटाकर सत्ता अपने हाथों में कर ली। सद्दाम तब बगदाद में पढ़ाई करते थे । तभी उन्होंने में अपने समूह की मदद से कासिम की हत्या करने की कोशिश की। वह देश से भाग कर मिस्त्र पहुंच गए। चार साल बाद यानी में कासिम के खिलाफ बाथ पार्टी में फिर बगावत हुई। बाथ पार्टी के कर्नल अब्दल सलाम मोहम्मद आरिफ गद्दी पर बैठे और सद्दाम घर लौट आए। इसी बीच सद्दाम ने साजिदा से शादी की जिससे उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं।
सद्दाम ज्यादा दिन चैन से नहीं रह पाए। एक बार फिर बाथ पार्टी में बगावत हुई और सद्दाम को नई हुकूमत ने जेल में डाल दिया। वह तब तक जेल मैं रहे जब तक कि में बाथ पार्टी के मेजर जनरल अहमद हसन अल वकर ने तख्ता पलट कर सत्ता अपने हाथो मैं लेली। अल वकर उनके चचेरे भाई भी लगते थे। वह अल बकर की रिवॉल्यूशनरी कमांड काउंसिल के प्रमुख सदस्य बन गए। सच बात तो यह भी है कि वही बकर की सत्ता के असली कर्त्ता-धर्त्ता थे। शुरुआत में वह बड़े उदार थे लेकिन धीरे-धीरे अपने असली रूप में आ गए। बकर बीमार थे और सत्ता की चाबुक का वही इस्तेमाल करते थे। उन्होंने सुन्नी जगत में अपनी अलग छवि बनाई और परदे के पीछे अपना एक अलग समूह तैयार करते रहे। 16 जुलाई को अल बकर को सत्ता से हटा कर वह स्वयं इराकी गद्दी पर बैठ गए। वह चाहते तो इस सत्ता परिवर्तन को स्वाभाविक हिंसारहित तख्तापलट का रूप दे सकते थे लेकिन उन्हें तो यह संदेश देना था कि अब सत्ता में सद्दाम आ गया है, इसलिए बगावती तेवर वाले सावधान हो जाएं। उन्होंने एक के बाद एक 66 देशद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया। अपने शासन के आरंभिक वर्षों में सद्दाम हुसैन अमेरिका के लाड़ले थे। उन्होंने ईरान से युद्ध मोल लिया और अमेरिका से मदद ली। रोनाल्ड रेगन ने उनकी मदद की। कैसा विद्रूप है कि हाल में जब रेगन की मृत्यु हुई तो वह उसी अमेरिकी सत्ता की जेल में मौत का इंतजार कर रहें थे
में एक बार दुजैल गांव में उनके ऊपर हमला हुआ था। जिसके जवाब में उन्होंने वहां शियाओं की हत्या करवा दी। वही फैसला आज उनकी फांसी का कारण बना। इसी तरह कुर्दों के ऊपर भी उनके जुल्मों की कथाएं कम दर्दनाक नहीं हैं। हालांकि दस वर्ष तक वह लगातार ईरान से लड़ते रहे, जिससे उनकी छवि एक जुझारू लड़ाके की बनी लेकिन उनकी उलटी गिनती तब शुरू हुई जब उन्होंने में कुवैत पर कब्जा कर लिया। इससे वह अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों की नजरों में आ गए और जल्दी ही खाड़ी युद्ध शुरू हो गया। 42 दिन के युद्ध के बाद इराक अमेरिकी गठबंधन सेनाओं से पराजित तो हुआ पर सद्दाम हुसैन नहीं झुके। इसी वजह से बार-बार अमेरिका को लगता रहा कि वह फिर चुनौती बन सकते हैं। लिहाजा उनके खिलाफ में फिर युद्ध हुआ और उसके बाद की कहानी हमारे सामने है। वह एक तानाशाह तो थे लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुद को अंतरराष्ट्रीय फलक पर पेश किया और अमेरिका के आगे नहीं झुके, उसने उन्हे वाकई अरब जगत का नायक बना दिया।